स्व-बोध- जरा अपने आप से मुलाकात

स्व-बोध हमारे बुजुर्गों के लिए एक योगिक प्रोग्राम है, जिससे वह अपने आप से मुलाकात कर पाएंगे |

महाभारत में एक श्लोक है मुहूर्तं ज्वलितं श्रयंम  ना तो धुमायतम चिरम उपरोक्त श्लोक का अर्थ है : यह श्रेष्ठ है कि यज्ञ में प्रज्वलित लपट के समान उठें फिर चाहे क्षणिक ही सही | किंतु स्वयं की पूर्णता में उठे कहीं ऐसा ना हो जाए कि हम यह लपट तो बने नहीं बल्कि यज्ञ वेदी में पड़ा लकड़ी का एक टुकड़ा बन जाये जो कि लंबे समय तक केवल धुआं दे रहा है | बुजुर्गों के पास जीवन का एक लंबा अनुभव है,ज्ञान है,विश्वास है, मान्यताएं हैं, नैतिक -अनैतिक की समझ है, जीवन के सिद्धांत हैं, परंपराएं हैं | किंतु अक्सर हो यह जाता है कि उपरोक्त वर्णित सभी बिंदु ही बुजुर्गों की अपने आप से मुलाकात होने में बाधक तत्व की भांति कार्य कर रहे होते हैं | और हमारे बुजुर्गों को इसका आभास भी नहीं होता |

 बुजुर्गों को स्वबोध योगिक प्रोग्राम क्यों करना चाहिए?
  1. स्वबोध योगिक प्रोग्राम आपकी आप से मुलाकात करवाइए परिणामत: ऐसे आंतरिक आनंद की अनुभूति होगी जो कि पहले कभी भी नहीं हुई थी |
  2. यह बोध उत्पन्न होगा कि कैसे सदैव ही प्रसन्नचित रहें चाहे स्वास्थ्य खराब हो या परिस्थितियों विपरीत हों |
  3. बिना किसी व्यक्ति या सहारे के अकेले कैसे मुस्कुराते हुए रहा जाए इसकी समझ विकसित होगी |
  4. किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति चाहे वह भय मृत्यु का ही क्यों ना हो |
  5. चढ़ता सूर्य जितना सुंदर होता है ढलता सूर्य भी उतना ही सुंदर होता है | कैसे जीवन की पूर्णता की बेला में सूर्य की भांति ऊर्जावान एवं आभावन बना रहा जाए इसका बोध प्रगाढ़ होगा |
  6. स्वयं के अंतस की अपने आंतरिक आलोक की एक झलक तो जरूर मिलेगी |
  7. नाते रिश्तेदार स्वजनों द्वारा दी गई पीड़ा के दंश से मुक्ति अवश्य संभव हो पाएगी
  8. स्वयं के प्रति एक विजेता का भाव जागृत होगा चाहे जीवन में कितनी असफलताओं का सामना क्यों न करना पड़ा हो |
  9. आपकी प्रज्ञा,बोध,विवेक, समझ में एक सकारात्मक उछाल आएगा | जीवन के प्रति नए पहलू एवं आयाम खुलेंगे चाहे आपकी उम्र 99 वर्ष ही क्यों ना हो |
  10. जीवन के बहाव के अवरोध हटेंगे | जीवन में एक निश्चलता, गत्यात्मकता एवं अविरल प्रवाह की धारा बहने लगेगी |
  11. जीवन की सार्थकता का आभास होगा तथा प्रसन्न रहने के नए द्वार-दरवाजे खुलेंगे | समय कैसे काटें ?यह समस्या ही समाप्त हो जाएगी |
  12. मृत्यु भी कैसे एक आनंददायी उत्सव हो सकती है, इसका बोध प्रगाढ़ होगा |