योगिक जीवन शैली क्या है
योगिक जीवन शैली क्या है – Yogic jeevan shailee kya hai
योग का दैनिक जीवन में उपयोग कैसे करें ? योगिक जीवन शैली क्या है ? योग से कैसे स्वास्थ्य की समग्रता प्राप्त की जा सकती है। आईये यहाँ समझते हैं |
वर्तमान समय में योग को करने को लेकर सभी ओर चर्चाएँ है। कैसे, क्यों, कहाँ योग को लेकर सूचनाओं की बाढ की सी प्रतीत होती है। आइये प्रयास करते है, कि क्यों योग दैनिक दिनचर्या का अंग होना चाहिए।
- योग आदिकाल से चला आ रहा भारतीय ज्ञान है।
- योग में स्वयं का, स्वयं के शरीर का एवं स्वयं के मस्तिष्क का उपयोग किया जाता है किसी बाह्य तत्व का नहीं।
- योगाभ्यास से शारीरिक सौष्ठव की ओर अग्रसरता बढती है।
योग प्राचीनतम् भारतीय विज्ञान है जो कि हमारे ॠषि-मुनियों ने प्रकृति से प्राप्त किया है। मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही योग का भी आरंभ हो गया था। उस समय का मानव विशुद्ध रूप से प्रकृति से समत्वभाव रखता होगा। ॠषि, मुनियों एवं योगियों ने योग के विज्ञान को समझा, उसके साथ दैनिक दिनचर्या के प्रयोग किये एवं शुद्ध रूप से योग का विकास एवं विस्तार किया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि योग प्राचीनतम् मनुष्य का एक सर्वोच्च ज्ञान है जो कि मानवीय शरीर एवं मस्तिष्क के लिए अति उपयोगी है। योग को सभी व्यक्तियों को स्वयं की दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना चाहिए।
योग आसनों में सुपरिष्कृत शारीरिक अवस्थाओं में श्वांस प्रश्वांस की तकनीक के माध्यम से स्थिर अवस्था में रहने का अभ्यास किया जाता है।
ईश्वर की सर्वोच्च परिष्कृत कृति ‘मानवीय शरीर’ के माध्यम से शारीरिक एवं मानसिक श्रेष्ठता को पाने का प्रयास किया जाता है। योग में किसी भी बाह्य उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। मात्र एक योग का मैट चाहिए एवं खुले आसमान के नीचे हवादार स्थान पर आप योग का अभ्यास कर सकते हैं।
योग हमारे शरीर की सूक्ष्मतम नाडियों, शिराओं के माध्यम से उर्जा का सम्पूर्ण शरीर एवं मस्तिष्क में संचार कर देता है। इससे हमारे शरीर, मस्तिष्क एवं हमारे स्वयं के मध्य एक समत्व की स्थापना हो पाती है। योग में निरंतरता एवं अभ्यास के द्वारा सर्वांगीर्ण शारीरिक एवं मानसिक श्रेष्ठता की प्राप्ति होती है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 15th जुलाई 2023
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos
तेज़ दिमाग के लिए योगासन
तेज़ दिमाग के लिए योगासन – Tez dimaag ke liye yogasana
योग की प्रामाणिक शारीरिक अभिव्यक्ति में क्या सम्मिलित होता है। योग आसनों को करने की सामान्य परिकल्पना को यहाँ पढियें :-
- योग आसनों को करने के लिए मस्तिष्क शरीर को निर्देशन देता है कि शरीर एक नियत अवस्था में आजाए-यहाँ शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य एकत्व का प्रयास होता है।
- योग आसनों को करने की सटीक तकनीक सीखना जिससे कि शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य समत्वभाव की स्थापना हो सके। इससे स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होती है।
आसन, योग सीखने का तीसरा एवं अतिमहत्वपूर्ण अंग होते हैं। आसन योग की द्रड एवं शारीरिक अभिव्यक्ति होते हैं। योग के जो बाकि सात अंग हैं यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहारा, धारणा, ध्यान, समाधि-ये सभी योग की अप्रत्यक्ष शारीरिक अभिव्यक्ति हैं, जिनका मस्तिष्क से सीधा संबंध है।
अत: आसन योग के प्राथमिक अभ्यास की विद्या हैं। योग आसनों से मस्तिष्क एवं शरीर के मध्य सर्वोच्य तालमेल की स्थापना होती है। इससे व्यक्ति मैं कौन हूँ। इस प्रश्न के उत्तर को जानने के मार्ग पर बढने लगता है। योग आसन अपने आप में ही अति विस्त्रित विषय है जिसका समग्र समुचित रूप से उल्लेख यहाँ पर संभव नहीं है। योग आसनों को मात्र एक जिज्ञासु मस्तिष्क ही समझ सकता है।
यहाँ हम योग आसनों को ऐसे परिपेक्ष में समझाने का प्रयास करेंगे जिससे एक विषय के रूप में योग के विद्वार्थी को समझ आसके।
योग आसन मस्तिष्क एवं शरीर के मध्य श्रेष्ठतम् सामन्जस्य की स्थापना करते हैं। यहाँ पर समझते हैं कि योग आसनों के द्वारा उपरोक्त कथन कैसे प्राप्त किया जा सकता है। मस्तिष्क हमारी समस्त इंद्रियों का नियंत्रक केंद्र है। मानवीय शरीर अभ्यास के द्वारा किसी भी वातावरण या अवस्था में ढल सकता है। आसनों के द्वारा हम हमारे मस्तिष्क को अभ्यस्थ कर सकते हैं कि वह हमारे शरीर को किसी अवस्था विशेष में स्थिर बनाए रखें। योग आसनों को सटीक तकनीक से करने पर ही मस्तिष्क का उपरोक्त वर्णित अभ्यास संभव है। मस्तिष्क हमारे शरीर को किसी आसन की मुद्रा में बनें रहने का अभ्यस्थ बनाता है। अत: हमने समझा कि मस्तिष्क एवं शरीर योग आसनों में सामन्जस्य से कार्य करते हैं एवं यहीं से शरीर एवं मस्तिष्क में एकत्व का भाव स्थापित होने लगता है। योग के जिज्ञासु व्यक्ति योग गुरू के सानिध्य में अभ्यास करते हैं। अत: वे श्रेष्ठ स्थिति ‘‘योग: कर्मसु कौशलम्’’, जिसका उल्लेख श्री कृष्ण ने गीता में किया है की ओर बढते हैं।
योग आसनों के अनुशासित अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर के ऊर्जा चक्र सक्रिय हो जाते है। इससे सम्पूर्ण शरीर में ऊर्जा का सुचारू संचार होता रहता है। ऊर्जा के सुचारू संचार से शरीर एवं मस्तिष्क में प्रसन्नचित्ता एवं चिर आनंद का भाव बना रहता है। इससे आंतरिक चिरशांति की स्थापना हमारे भीतर हो पाती है।
योग आसन शरीर एवं मस्तिष्क के द्वारा बाह्य रूप से किया जाने वाला योगाभ्यास है। इससे शारीरिक सौष्ठव एवं मानसिक विलक्षणता की प्राप्ति होती है।
योग आसनों को करने से हमारा शरीर अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल पाता है, इसका परिणाम श्रेष्ठ शारीरिक सौष्ठव की प्राप्ति होता है। योग आसनों से स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होती है।
समत्व भव: आसनों के परिपेक्ष में इसका अर्थ हुआ आसनों की मुद्रा में सम्पूर्ण एकत्व। योग के विद्यार्थी का प्रमुख उद्देश्य आसनों को करने की सही एवं श्रेष्ठ तकनीक को सीखना होना चाहिए। इससे पैर के अंगुठे से लेकर सिर तक का एक सम्पूर्ण संतुलन स्थापित होगा। अत: समत्व भव: की प्राप्ति होगी। आसनों को सही तकनीक से करने पर सम्पूर्ण शरीर में रक्त का प्रवाह सही होता है जिससे आंतरिक अंग स्वस्थ बने रहते हैं। अत: व्यक्ति को स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होती है।
योगावास में हम अष्टांग योग का अनुसरण करते हैं एवं इसी अष्टांग योग की विद्या को सिखाते भी है। इससे योग के विद्यार्थी की माँसपेशियाँ सशक्त एवं सुडौल बनती है, हडि्डयाँ मजबूत एंव गहरी होती है। शरीर सुडौल एवं लचीला बनता है। हमारा उद्देश्य है कि योग के विद्यार्थी में शारीरिक सुडौलता एवं मानसिक चिर शांति की प्राप्ति हो।
योग के प्रशिक्षु स्वयं की सर्वोच्च चेतना का अनुभव कर पाएं एवं वही से स्वयं के शरीर एवं मस्तिष्क का संचालन करने में सक्षम हो। उपरोक्त वर्णित स्थिति हम बाह्य जगत में ढूंढते रहते हैं जबकि ये सभी योग के अंदर विद्यमान रहती है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 10th जुलाई 2023
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos
दैनिक दिनचर्या में योग
दैनिक दिनचर्या में योग -Dainik dincharya mein Yog
योग का अभ्यास-योग को किस प्रकार दैनिक दिनचर्या का अंग बनाया जाए।
योग की निरंतरता को बनाएँ रखने के लिए योग के विद्यार्थी की क्या-क्या तैयारियाँ होनी चाहिए। यहाँ विस्तार से पढते है
1. योग को मानसिक रूप से जीवन शैलि का अंग बनाने के लिए तैयार रहें।
2. योग आसनों को आरंभ करने से पहले क्या-क्या करें।
भारत में योग के पुनरोत्थान के पश्चात इस योग के विज्ञान और गहराई से जानने की जिज्ञासा बढ़ी है। योग का एक अर्थ यह भी है कि आसानों के माध्यम से किया जाने वाला यह शारीरिक अभ्यास न सिर्फ शारीरिक एवं मानसिक समत्व की ओर ले जाता है बल्कि योग साधक को स्वयं के वास्तविक स्वरूप (आत्मन) से भी एकाकार करवा देता है। स्वयं से एकाकार किया हुआ व्यक्ति अपनी सर्वोच्य चेतना के द्वारा जीवन को संचालित करता है।
वर्तमान समय में भी बहुतायत में व्यक्तियों की मान्यता है कि योग आपको मेडिटेशन की ऐसी स्थिति में ले जाता है जहाँ कोई पारलौकिक शक्ति से व्यक्ति का साक्षात्कार हो जाता है। उपरोक्त वक्तव्य योग का एक संकुचित दृष्टिकोण है।
निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से चरणबद्ध तरीके से आप समझ सकते हैं कि क्यों योग जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है:-
- योग आसन करने का समय – प्रात: काल अथवा सायंकाल में।
- योग करने का स्थान – योग करने का स्थान स्वच्छ, हवादार होना चाहिए।
- योग आसन किन दिनों में कर सकते हैं :- योग जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए, जिससे आप कभी समझौता ना करें।
- योग का अनुशासन :- योग संपूर्ण अनुशासन द्वारा किया जाना चाहिए। आसनों को गुरू के सानिध्य में सटीक तकनीक से किया जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होगी।
- योग के संयम :- अष्टांग योग के प्रथम दो अंग यम एवं नियम की पालना योग के विद्यार्थी द्वारा अनवरत रूप से की जानी चाहिए। योग दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अंग होना चाहिए।
- सम्पूर्ण समर्पण के साथ योग :- योग का प्रादुर्भाव हजारों वर्षों पूर्व भारत की भूमि में हुआ थ। प्राचीन ॠषि-मुनियों, तपस्वियों, सन्यासियों एवं योगियों ने योग का ज्ञान सीधे तौर से प्रकृति से प्राप्त किया था। अत: योग के विद्यार्थियों को योग गुरू के सानिध्य में सम्पूर्ण समर्पण के साथ सीखना चाहिए।
योग में समत्व तत्व :- योग के विद्यार्थियों को आसनों में पारंगतता की सदैव आकांक्षा रखनी चाहिए। आसनों को गुरू के सानिध्य में सही तकनीक से करने पर आसन सिद्धि (आसनों में समत्व) की प्राप्ति होती है। जिसे गीता में श्री कृष्ण ने ‘‘समत्वं योग: उच्यते’’ कहा है। - योग के निरंतर अभ्यास से साधक में सर्वांगीण परिवर्तन आता है। व्यक्ति अपने स्वास्थ, भोजन एवं स्वच्छता के प्रति अधिक जागरूक हो जाता है।
- योगा आसन शारीरिक क्रियाकलाप, खिचाव एवं भाव-भंगिमाएँ नहीं है। योग के द्वारा व्यक्ति मानसिक रूप से भी श्रेष्ठ संतुलन स्थापित कर पाता है। योग साधक विपरीत परिस्थितियों में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते हैं। योग आसनों को करने से व्यक्ति में से दोहरापन समाप्त होता है एवं एकत्व की स्थापना होती है।
योग आसनों को आरंभ करने से पूर्व निम्नांकित बिंदुओं को ध्यान रखा जाना चाहिए।
आसनों को आरंभ करने से पूर्व ब्लैडर खाली होना चाहिए। - आसनों को आरंभ करने से पूर्व स्नान करना चाहिए इससे त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं।
- आसनों को करने के पश्चात स्नान कर लेना चाहिए इससे शरीर एवं मस्तिष्क में नवीन ताजगी आ जाती है।
- आसनों का अभ्यास समतल जमीन पर किया जाना चाहिए, सदैव योगामैट का उपयोग करना चाहिए। असमतल भूमि पर योग आसनों का अभ्यास कभी नहीं करना चाहिए।
- आसन के अभ्यास के दौरान यदि शरीर में कहीं असहजता का अनुभव हो तो तुरंत आसन को रोक देना चाहिए एवं सहज समिति में आ जाना चाहिए।
- श्वांस की तकनीक :- योग आसनों के समय श्वांस सिर्फ नाक के माध्यम से ही ली जानी चाहिए, मुँह के द्वारा नहीं। आसनों के समय श्वांस एवं प्रश्वांस अनवरत जारी रहना चाहिए। यद्पि आसनों के समय मुद्राओं पर ही ध्यान केंद्रित करने की प्रवृति, साधारणतया देखी गई है तद्पि श्वांस एवं प्रश्वांस पर भी आसनों के दौरान सम्पूर्ण ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आसनों के आरंभ, मध्य एवं अंत में श्वांस प्रश्वांस के लिए सुनिश्चित तकनीक होती है। यह तकनीक योग गुरू आवश्यक रूप से योग के विद्यार्थियों को सिखलाते हैं।
- आसनों के अंत में शवासन करना अनिवार्य होता है क्योंकि इससे शरीर एवं मस्तिष्क की थकान मिट जाती है। साथ ही साथ नवीन ऊर्जा का संचार भी हो पाता है।
- प्राणायाम करने में सटीक तकनीक एवं कुशलता की आवश्यकता होती है। अत: प्राणयाम का अभ्यास गुरू के सानिध्य में ही किया जाना चाहिए।
- योग आसनों को सदैव सही पद्धति एवं तकनीक द्वारा ही किया जाना चाहिए। आसन करने से शरीर हल्का महसूस होता है। आसनों को करने से साधक के व्यक्तित्व का दौहराव समाप्त होता है एवं शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मन में समत्व की स्थापना होती है।
- योग आसनों में विन्यास का सही निर्धारण सुनिश्चित करता है कि साधक स्वलक्ष्य की प्राप्ति कर लेगा। विन्यास पद्म साधना पर आधारित होना चाहिए। योग विशुद्ध रूप से जीवनशैलि का अविभाज्य एवं अभिन्न अंग बनने की क्षमता रखता है। योग से हमारी जीवन की शैलि यथा सोचने, समझने, कार्यशैलि, स्वास्थ (मानसिक एवं शारीरिक दोनों) को अधिक उपयोगी एवं नवीन आयाम मिलने की सम्पूर्ण संभावना है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 22nd June 2021
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos
दैनिक जीवन में योग
दैनिक जीवन में योग के फायदे – Dainik jeevan mein Yog ke fayde
योग का दैनिक जीवन में महत्व क्यों है?
योग लाभदायी होगा यदि नियमित रूप से किया जाए। योग की वे कौन-कौनसी बारीकियाँ होती है जिनके माध्यम से स्वास्थ्य की समग्रता प्राप्त की जा सकती है। यहाँ पढिये।
1. योग के लाभों को जानने से पूर्व योग के अर्थ को जानते हैं जो कि पुरातन योग गुरूओं ने बताया। योग शरीर, मस्तिष्क एवं श्वांस का सामन्जस्य है, जीवन के प्रत्येक स्तर पर समत्व एवं आनंद की स्थिति है।
2. महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंग बताएँ-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहारा, धारणा ध्यान एवं समाधि। ये अंग हमारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होने चाहिए। इससे शारीरिक एवं मानसिक समत्व आएगा जिससे स्वस्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होगी।
योग के अद्वितीय विज्ञान को समझने से पूर्व यह जान लेते है कि हमें योग को करने की आवश्यकता क्यों है।
वर्तमान समय में योग के बारे में साधरण मान्यता है कि योग प्राचीन व्यायाम की विद्या है, जो कि बहुत लाभदायक है। हम योग के बारे में साधारण मान्यता व्यायाम का प्रयोग इसलिए कर रहे है क्योंकि योग जो कि हमारी पौराणिक समय की जीवन पद्धति था, उसे हमारे विद्यालयों में कभी भी विषय के रूप में सम्मिलित नहीं किया गया था। योग की गहन समझ समाज के बुद्धिजीवियों तक थी। हम योग के इस साधारण अर्थ से सहमत थे कि यह एक व्यायाम है जिससे हमें फायदा होता है। क्यों एवं कैसे हमे जानकारी नहीं थी।
कुछ समय पूर्व तक मेरी भी योग के बारे में यही राय थी कि योग एक व्यायाम है, जिससे लाभ होता है। स्वस्थ रहने की चाह एवं प्रकृति के प्रति लगाव ने मुझे योग से मिलवाया। मैं जीवनपर्यंत योग के साथ रहूँगा एवं स्वास्थ के प्रति जागरूक सभी व्यक्तियों से आशा करता हूँ कि वे भी योग को जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ। योग के प्रति साधारण मान्यता है कि यह एक व्यायामशैलि है जो कि लाभकारी है, हम सभी के लिए यह सिर्फ सतही ज्ञान है। योग का कर्मफल विशाल व आश्चर्यजनक है जो कि मनुष्य को तीव्रगति से स्वास्थ की समग्रता की ओर ले जाने वाला है।
पूर्व में समाज के कुछ प्रबुद्ध वर्ग तक ही योग का ज्ञान सीमित होने के कारण हम इस विद्या से लाभांन्वित नहीं हो पा रहे थे जो कि हमारे पूर्वजों ने बनायी थी।
योग में और गहराई में जाते हैं एवं जानते हैं कि क्यों योग जीवन का अभिन्न अंग होना ही चाहिए।
योग शब्द का प्रादुर्भाव संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुआ है जिसका अर्थ है जोड़ना, समाहित करना। योग के द्वारा हम हमारी सर्वोच्च चेतना के माध्यम से हमारे शरीर एवं मस्तिष्क का संचालन कर पाते हैं। इससे हमारी सर्वोच्च चेतना, शरीर एवं मस्तिष्क में समत्व की स्थापना होती है। योग हमारे जीवन के सभी पक्षों को सुस्पस्ट रूप से हमारे सम्मुख रखने में सहायक होता है। योग की सर्वांगीणता समझने के लिए महर्षि पतंजलि के योगसूत्र के कुछ बिंदुओं के देखते हैं। महर्षि पतंजलि ने योग को अष्टांग माना अर्थात योग के 8 अंग बताए। पतंजलि योग सूत्र योग की सर्वप्रमाणिक उपलब्ध प्रथम कृति है। ये 8 अंग निम्न प्रकार से है।
- यम – यम साधक को आत्मसंयमित करते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी ना करनाङ, ब्रह्मचर्य (आत्मसंयम), अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक संचित ना करना)।
- नियम – योग साधक के अभ्यास के लिए नियम हैं। नियम हैं-शुचा (स्वच्छता), संतोष, तपस, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
- आसन – शरीर को नियत स्थिति में स्थिर रखने का अभ्यास।
- प्राणायाम – श्वांस एवं प्रश्वांस की नियमित गति को तोड़ना।
- प्रत्याहारा – इंद्रियों को अंतरमुखी करना।
- धारणा – अंतरमुखी होते हुए कहीं एक ओर अपने ध्यान को केंद्रित करना।
- ध्यान – मोडिटेशन
- समाधि – स्वयं के स्वरूप में समाहित होना।
प्रथम तीन अंग यम, नियम एवं शारीरिक आसन यहाँ व्यक्ति के व्यवहार एवं अनुशासन से संबंधित हैं।
इनसे शारीरिक सुडौलता एवं दक्षता आती है। प्रथम तीनों अंग यम, नियम एवं आसन बाह्य साधना है।
प्राणायाम द्वारा श्वांस गति की निरंतरता को तोड़ा जाता है, जिससे मस्तिष्क पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। प्रत्याहारा के द्वारा इंद्रियों को अंतरमुखी किया जाता है जिससे व्यक्ति अपने स्वरूप की ओर बढ़ सके।
शरीर जब पूर्णतया स्वस्थ हो एवं मस्तिष्क सही उदेश्य की ओर बढ़ रहा हो तो बाद के तीन अंग धारणा, ध्यान एवं समाधि व्यक्ति को अपने स्वरूप की ओर ले जाते है जो कि व्यक्ति की आत्मन होती है, यहाँ से व्यक्ति किसी बाह्य स्त्रोत पर निर्भर नहीं रहता। धारणा, ध्यान एवं समाधि के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर एवं मस्तिष्क का संचालन अपनी आत्मन द्वारा कर पाता है। यहाँ से ब्रह्मांड की समस्त शक्तियाँ व्यक्ति की साथी हो पाती है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 25th June 2021
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos