हठयोगा क्या होता है
हठ योग क्या होता है- Hatha Yoga Kya hota hai
हठ योग 1000 साल पुराना योग है, जो कि मुख्य रूप से शरीर एवं मस्तिष्क का प्रशिक्षण है। प्राचीन भारत की योग की श्रेष्ठ विद्याओं में हठयोग सम्मिलित है। हठयोग श्रेष्ठ क्यों है यहाँ पढते हैं।
1. हठयोग का प्रादुर्भाव लगभग 1000 वर्ष पूर्व हुआ था एवं हठयोग हमारी प्राचीन जीवनशैलि का अंग रहा है।
2. हठयोग शरीर एवं मस्तिष्क को स्वास्थ्य की संपूर्ण समग्रता की ओर ले जाता है।
हठयोग योग की प्राचीन भारतीय पद्धति है। हठयोगियों ने काया, वाचा, मनसा में से काया अर्थात शरीर पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। हठयोग में शरीर के शुद्धीकरण की विभिन्न तकनिकों के माध्यम से एक योग साधक स्वयं के शरीर में से अपशिष्ट पदार्थों को यौगिक तकनीक के माध्यम से बाहर निकाल सकता है। इन तकनिकों से मानवीय शरीर स्वस्थ की समग्रता को बनाए रख पाता है। हठयोग की तकनीक से शारीरिक सौष्ठता की प्राप्ति होती है। ‘‘हठ’’ शब्द में ह से तात्पर्य सूर्य से एवं ठ से तात्पर्य चंद्रमा से होता है। हठयोग में आसनों एवं प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक सौष्ठता को बढाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 22nd June 2021
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos
दैनिक दिनचर्या में योग
दैनिक दिनचर्या में योग -Dainik dincharya mein Yog
योग का अभ्यास-योग को किस प्रकार दैनिक दिनचर्या का अंग बनाया जाए।
योग की निरंतरता को बनाएँ रखने के लिए योग के विद्यार्थी की क्या-क्या तैयारियाँ होनी चाहिए। यहाँ विस्तार से पढते है
1. योग को मानसिक रूप से जीवन शैलि का अंग बनाने के लिए तैयार रहें।
2. योग आसनों को आरंभ करने से पहले क्या-क्या करें।
भारत में योग के पुनरोत्थान के पश्चात इस योग के विज्ञान और गहराई से जानने की जिज्ञासा बढ़ी है। योग का एक अर्थ यह भी है कि आसानों के माध्यम से किया जाने वाला यह शारीरिक अभ्यास न सिर्फ शारीरिक एवं मानसिक समत्व की ओर ले जाता है बल्कि योग साधक को स्वयं के वास्तविक स्वरूप (आत्मन) से भी एकाकार करवा देता है। स्वयं से एकाकार किया हुआ व्यक्ति अपनी सर्वोच्य चेतना के द्वारा जीवन को संचालित करता है।
वर्तमान समय में भी बहुतायत में व्यक्तियों की मान्यता है कि योग आपको मेडिटेशन की ऐसी स्थिति में ले जाता है जहाँ कोई पारलौकिक शक्ति से व्यक्ति का साक्षात्कार हो जाता है। उपरोक्त वक्तव्य योग का एक संकुचित दृष्टिकोण है।
निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से चरणबद्ध तरीके से आप समझ सकते हैं कि क्यों योग जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है:-
- योग आसन करने का समय – प्रात: काल अथवा सायंकाल में।
- योग करने का स्थान – योग करने का स्थान स्वच्छ, हवादार होना चाहिए।
- योग आसन किन दिनों में कर सकते हैं :- योग जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए, जिससे आप कभी समझौता ना करें।
- योग का अनुशासन :- योग संपूर्ण अनुशासन द्वारा किया जाना चाहिए। आसनों को गुरू के सानिध्य में सटीक तकनीक से किया जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होगी।
- योग के संयम :- अष्टांग योग के प्रथम दो अंग यम एवं नियम की पालना योग के विद्यार्थी द्वारा अनवरत रूप से की जानी चाहिए। योग दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अंग होना चाहिए।
- सम्पूर्ण समर्पण के साथ योग :- योग का प्रादुर्भाव हजारों वर्षों पूर्व भारत की भूमि में हुआ थ। प्राचीन ॠषि-मुनियों, तपस्वियों, सन्यासियों एवं योगियों ने योग का ज्ञान सीधे तौर से प्रकृति से प्राप्त किया था। अत: योग के विद्यार्थियों को योग गुरू के सानिध्य में सम्पूर्ण समर्पण के साथ सीखना चाहिए।
योग में समत्व तत्व :- योग के विद्यार्थियों को आसनों में पारंगतता की सदैव आकांक्षा रखनी चाहिए। आसनों को गुरू के सानिध्य में सही तकनीक से करने पर आसन सिद्धि (आसनों में समत्व) की प्राप्ति होती है। जिसे गीता में श्री कृष्ण ने ‘‘समत्वं योग: उच्यते’’ कहा है। - योग के निरंतर अभ्यास से साधक में सर्वांगीण परिवर्तन आता है। व्यक्ति अपने स्वास्थ, भोजन एवं स्वच्छता के प्रति अधिक जागरूक हो जाता है।
- योगा आसन शारीरिक क्रियाकलाप, खिचाव एवं भाव-भंगिमाएँ नहीं है। योग के द्वारा व्यक्ति मानसिक रूप से भी श्रेष्ठ संतुलन स्थापित कर पाता है। योग साधक विपरीत परिस्थितियों में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते हैं। योग आसनों को करने से व्यक्ति में से दोहरापन समाप्त होता है एवं एकत्व की स्थापना होती है।
योग आसनों को आरंभ करने से पूर्व निम्नांकित बिंदुओं को ध्यान रखा जाना चाहिए।
आसनों को आरंभ करने से पूर्व ब्लैडर खाली होना चाहिए। - आसनों को आरंभ करने से पूर्व स्नान करना चाहिए इससे त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं।
- आसनों को करने के पश्चात स्नान कर लेना चाहिए इससे शरीर एवं मस्तिष्क में नवीन ताजगी आ जाती है।
- आसनों का अभ्यास समतल जमीन पर किया जाना चाहिए, सदैव योगामैट का उपयोग करना चाहिए। असमतल भूमि पर योग आसनों का अभ्यास कभी नहीं करना चाहिए।
- आसन के अभ्यास के दौरान यदि शरीर में कहीं असहजता का अनुभव हो तो तुरंत आसन को रोक देना चाहिए एवं सहज समिति में आ जाना चाहिए।
- श्वांस की तकनीक :- योग आसनों के समय श्वांस सिर्फ नाक के माध्यम से ही ली जानी चाहिए, मुँह के द्वारा नहीं। आसनों के समय श्वांस एवं प्रश्वांस अनवरत जारी रहना चाहिए। यद्पि आसनों के समय मुद्राओं पर ही ध्यान केंद्रित करने की प्रवृति, साधारणतया देखी गई है तद्पि श्वांस एवं प्रश्वांस पर भी आसनों के दौरान सम्पूर्ण ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आसनों के आरंभ, मध्य एवं अंत में श्वांस प्रश्वांस के लिए सुनिश्चित तकनीक होती है। यह तकनीक योग गुरू आवश्यक रूप से योग के विद्यार्थियों को सिखलाते हैं।
- आसनों के अंत में शवासन करना अनिवार्य होता है क्योंकि इससे शरीर एवं मस्तिष्क की थकान मिट जाती है। साथ ही साथ नवीन ऊर्जा का संचार भी हो पाता है।
- प्राणायाम करने में सटीक तकनीक एवं कुशलता की आवश्यकता होती है। अत: प्राणयाम का अभ्यास गुरू के सानिध्य में ही किया जाना चाहिए।
- योग आसनों को सदैव सही पद्धति एवं तकनीक द्वारा ही किया जाना चाहिए। आसन करने से शरीर हल्का महसूस होता है। आसनों को करने से साधक के व्यक्तित्व का दौहराव समाप्त होता है एवं शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मन में समत्व की स्थापना होती है।
- योग आसनों में विन्यास का सही निर्धारण सुनिश्चित करता है कि साधक स्वलक्ष्य की प्राप्ति कर लेगा। विन्यास पद्म साधना पर आधारित होना चाहिए। योग विशुद्ध रूप से जीवनशैलि का अविभाज्य एवं अभिन्न अंग बनने की क्षमता रखता है। योग से हमारी जीवन की शैलि यथा सोचने, समझने, कार्यशैलि, स्वास्थ (मानसिक एवं शारीरिक दोनों) को अधिक उपयोगी एवं नवीन आयाम मिलने की सम्पूर्ण संभावना है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 22nd June 2021
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योग क्या होता है
योग क्या होता है – Yog kya hota hai !
योग एक उपयोगी विज्ञान के रूप में। हम यहाँ पर योग को इसकी समग्रता के रूप में समझने का प्रयास, योग के आधारभूत मूल्यों को ध्यान में रखते हुए करेंगे ।
1. योग एक विज्ञान के रूप में दैनिक जीवन में अपनाएं जानें वाली विधा है, जिसका सामान्य व्यक्तियों के लिए सरलीकरण किया जाना चाहिए।
2. प्रतिदिन किये जाने वाले योग के दो मुख्य अंग हैं आसन एवं प्राणायाम
योग, हम सभी के लिए अत्यधिक उपयोगी है जिसके माध्यम से मानवीय शरीर को लाभ होता है एवं स्वास्थ की समग्रता की प्राप्ति होती है। जैसा कि योग की विभिन्न जानकारी बहुतायत में विभिन्न माध्यमों से उपलब्ध है। इससे यह कठिनाई उत्पन्न हो जाती है कि योग को किस माध्यम के द्वारा सही-सही मायनों में समझा जाए? कठिनाई इससे अधिक बढ़ पाती है कि कौनसा योग सीखा जाए, कहाँ से सीखा जाए एवं कैसे दैनिक दिनचर्या में योग का उपयोग किया जाए?
योग को समझने के कुछ बिंदुओं का उल्लेख करने का प्रयास यहाँ करते हैं। योगावास में हम योग को समग्रता के साथ सिखाते हैं। इसमें सही आसन, सही तकनीक, शरीर एवं मस्तिष्क का संतुलन, श्वांस प्रश्वास की गति, प्राणायाम, मैडिटेशन का विशेषत: संज्ञान लिया जाता है जिससे योग के विद्यार्थी को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ में समत्व एवं समग्रता की प्राप्ति हो सके।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 1st जुलाई 2022
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दैनिक जीवन में योग
दैनिक जीवन में योग के फायदे – Dainik jeevan mein Yog ke fayde
योग का दैनिक जीवन में महत्व क्यों है?
योग लाभदायी होगा यदि नियमित रूप से किया जाए। योग की वे कौन-कौनसी बारीकियाँ होती है जिनके माध्यम से स्वास्थ्य की समग्रता प्राप्त की जा सकती है। यहाँ पढिये।
1. योग के लाभों को जानने से पूर्व योग के अर्थ को जानते हैं जो कि पुरातन योग गुरूओं ने बताया। योग शरीर, मस्तिष्क एवं श्वांस का सामन्जस्य है, जीवन के प्रत्येक स्तर पर समत्व एवं आनंद की स्थिति है।
2. महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंग बताएँ-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहारा, धारणा ध्यान एवं समाधि। ये अंग हमारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होने चाहिए। इससे शारीरिक एवं मानसिक समत्व आएगा जिससे स्वस्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होगी।
योग के अद्वितीय विज्ञान को समझने से पूर्व यह जान लेते है कि हमें योग को करने की आवश्यकता क्यों है।
वर्तमान समय में योग के बारे में साधरण मान्यता है कि योग प्राचीन व्यायाम की विद्या है, जो कि बहुत लाभदायक है। हम योग के बारे में साधारण मान्यता व्यायाम का प्रयोग इसलिए कर रहे है क्योंकि योग जो कि हमारी पौराणिक समय की जीवन पद्धति था, उसे हमारे विद्यालयों में कभी भी विषय के रूप में सम्मिलित नहीं किया गया था। योग की गहन समझ समाज के बुद्धिजीवियों तक थी। हम योग के इस साधारण अर्थ से सहमत थे कि यह एक व्यायाम है जिससे हमें फायदा होता है। क्यों एवं कैसे हमे जानकारी नहीं थी।
कुछ समय पूर्व तक मेरी भी योग के बारे में यही राय थी कि योग एक व्यायाम है, जिससे लाभ होता है। स्वस्थ रहने की चाह एवं प्रकृति के प्रति लगाव ने मुझे योग से मिलवाया। मैं जीवनपर्यंत योग के साथ रहूँगा एवं स्वास्थ के प्रति जागरूक सभी व्यक्तियों से आशा करता हूँ कि वे भी योग को जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ। योग के प्रति साधारण मान्यता है कि यह एक व्यायामशैलि है जो कि लाभकारी है, हम सभी के लिए यह सिर्फ सतही ज्ञान है। योग का कर्मफल विशाल व आश्चर्यजनक है जो कि मनुष्य को तीव्रगति से स्वास्थ की समग्रता की ओर ले जाने वाला है।
पूर्व में समाज के कुछ प्रबुद्ध वर्ग तक ही योग का ज्ञान सीमित होने के कारण हम इस विद्या से लाभांन्वित नहीं हो पा रहे थे जो कि हमारे पूर्वजों ने बनायी थी।
योग में और गहराई में जाते हैं एवं जानते हैं कि क्यों योग जीवन का अभिन्न अंग होना ही चाहिए।
योग शब्द का प्रादुर्भाव संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुआ है जिसका अर्थ है जोड़ना, समाहित करना। योग के द्वारा हम हमारी सर्वोच्च चेतना के माध्यम से हमारे शरीर एवं मस्तिष्क का संचालन कर पाते हैं। इससे हमारी सर्वोच्च चेतना, शरीर एवं मस्तिष्क में समत्व की स्थापना होती है। योग हमारे जीवन के सभी पक्षों को सुस्पस्ट रूप से हमारे सम्मुख रखने में सहायक होता है। योग की सर्वांगीणता समझने के लिए महर्षि पतंजलि के योगसूत्र के कुछ बिंदुओं के देखते हैं। महर्षि पतंजलि ने योग को अष्टांग माना अर्थात योग के 8 अंग बताए। पतंजलि योग सूत्र योग की सर्वप्रमाणिक उपलब्ध प्रथम कृति है। ये 8 अंग निम्न प्रकार से है।
- यम – यम साधक को आत्मसंयमित करते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी ना करनाङ, ब्रह्मचर्य (आत्मसंयम), अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक संचित ना करना)।
- नियम – योग साधक के अभ्यास के लिए नियम हैं। नियम हैं-शुचा (स्वच्छता), संतोष, तपस, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
- आसन – शरीर को नियत स्थिति में स्थिर रखने का अभ्यास।
- प्राणायाम – श्वांस एवं प्रश्वांस की नियमित गति को तोड़ना।
- प्रत्याहारा – इंद्रियों को अंतरमुखी करना।
- धारणा – अंतरमुखी होते हुए कहीं एक ओर अपने ध्यान को केंद्रित करना।
- ध्यान – मोडिटेशन
- समाधि – स्वयं के स्वरूप में समाहित होना।
प्रथम तीन अंग यम, नियम एवं शारीरिक आसन यहाँ व्यक्ति के व्यवहार एवं अनुशासन से संबंधित हैं।
इनसे शारीरिक सुडौलता एवं दक्षता आती है। प्रथम तीनों अंग यम, नियम एवं आसन बाह्य साधना है।
प्राणायाम द्वारा श्वांस गति की निरंतरता को तोड़ा जाता है, जिससे मस्तिष्क पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। प्रत्याहारा के द्वारा इंद्रियों को अंतरमुखी किया जाता है जिससे व्यक्ति अपने स्वरूप की ओर बढ़ सके।
शरीर जब पूर्णतया स्वस्थ हो एवं मस्तिष्क सही उदेश्य की ओर बढ़ रहा हो तो बाद के तीन अंग धारणा, ध्यान एवं समाधि व्यक्ति को अपने स्वरूप की ओर ले जाते है जो कि व्यक्ति की आत्मन होती है, यहाँ से व्यक्ति किसी बाह्य स्त्रोत पर निर्भर नहीं रहता। धारणा, ध्यान एवं समाधि के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर एवं मस्तिष्क का संचालन अपनी आत्मन द्वारा कर पाता है। यहाँ से ब्रह्मांड की समस्त शक्तियाँ व्यक्ति की साथी हो पाती है।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 25th June 2021
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos
योग से युवाओं को फायदे
योग के फायदे युवाओं को – Yog ke fayde yuvaon ko – (20+ years)
योग से युवाओं को होने वाले स्वास्थ्य लाभ | योग से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी लाभ विशेषत: युवाओं में योग को अनुशासन एवं निरंतरता के साथ करने से निश्चित रूप से अमूल्य लाभ प्राप्त होते हैं। योग मानवीय जीवन को श्रेष्ठतम् की ओर अग्रसर करने वाली विद्या है। पढिये योग से कैसे व्याधि मुक्त शरीर की प्राप्ति हो सकती है।
1. वर्तमान समय में भारत का युवा वर्ग बीमारियों का सामना कर रहा है, क्योंकि उनकी जीवनशैलि ठीक नहीं है।
2. योग के द्वारा साधक स्वयं की कोशिका के स्तर पर परिवर्तन लाने की क्षमता विकसित कर सकता है जिससे स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति हो सके।
हमारे देश में 18 वर्ष एवं उससे ऊपर के सभी व्यक्ति अडल्ट श्रेणी में आते हैं। इन युवाओं के लिए स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने में योग अप्रत्याशित रूप से लाभदायक सिद्ध हो सकता है। हमारे देश के इन युवाओं में खराब जीवनशैली होने के कारण कई बीमारियाँ होने लगी है जैसे डायबिटीज। भारत डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बनता जा रहा है। बहुत से युवा जिनकी उम्र 35 या उससे अधिक है रक्तचाप की दवाइयाँ ले रहे हैं, पीठ का दर्द जनसाधारण में आमतौर से रहने लगा है, महिलाओं में पी.सी.ओ.डी. बहुतायत में होता जा रहा है, हृदय संबंधी बीमारियाँ 35 वर्ष में ही होने लगी है।
हमारी जीवनशैली पर यदि हम थोड़ा ध्यान दें तो पाऐंगे कि वहाँ पर थोड़े से सकारात्मक बदलाव से हम उपरोक्त समस्याओं पर पार पाने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। मोबाइल फोन, स्मार्ट टी.वी एवं एैसे ही अन्य साधनों के कारण हमारा युवा एक प्रकार की वर्चुअल लत का शिकार हो चुका है। समाज का खुशी का पैमाना भी इस कारण नीचे की ओर आया है।
प्रौढ के रूप में हम लोग इस बात के साक्षी रहे हैं कि जब एैसे वर्चुअल गैजेट्स जब कम थे तो अधिक समय खेलकूद एवं शारीरिक गतिविधियों में जाता था। हमारे प्रौढ एवं युवाओं को मिलकर यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि युवाओं को इस वर्चुअल मायाजाल से निकाला जाए। गौतम बुद्ध ने भी कहा है ‘‘आत्मदीपो भव:’’ अर्थात् आप ही को अपना दीपक बनना पड़ेगा एवं सही राह पर चलना पड़ेगा। यह भी मानवीय जीवन की एक सर्वोच्च अवस्था है एवं योग इस स्थिति को प्राप्त करने का सर्वोच्च साधन है। योग जब अपनी समग्रता के साथ सीखा जाए एवं अभ्यास में लाया जाए तब हम जीवन की वास्तविक समस्याओं को ना सिफ पहचान सकेंगे बल्कि उनका समाधान भी सहजता से कर पाऐंगे। अष्टांग योग के यम एवं नियमों के द्वारा युवा स्वयं के जीवन में ना सिफ श्रेष्ठ नियम बना पाऐंगे बल्कि स्वयं के सिद्धांतों की पालना भी कड़ाई से कर पाऐंगे। इस प्रकार योग जीवन में सफलता की प्राप्ति में सहायक होगा। आसनों एवं प्राणायाम के द्वारा युवा धरती के गुरूत्वाकर्षण को काम में लेते हुए शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य समत्व की स्थापना कर पाऐंगे। पेट संबंधी विभिन्न विकार भी वर्तमान समय के युवाओं की एक समस्या है। प्राचीन ॠषि-मुनियों एवं हठयोगियों ने पेट की मांस-पेशियों को सुद्रड़ बनाने की विभिन्न यौगिक तकनीक बताई है। इन यौगिक तकनीकों के द्वारा मानवीय शरीर के पेट संबंधी विकारों को दूर किया जा सकता है तथा पेट के अंगों को स्वस्थ्य रखा जा सकता है। आशा करते हैं कि योग के विभिन्न लाभों को ध्यान में रखते हुए आप योग को जीवनशैलि का अभिन्न अंग बनाऐंगे।
लेखक : ॠषि सिंह
दिनांक : 22nd June 2021
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos