योगिक जीवन शैली क्या है

योगिक जीवन शैली क्या है – Yogic jeevan shailee kya hai

योग का दैनिक जीवन में उपयोग कैसे करें ? योगिक जीवन शैली क्या है ?   योग से कैसे स्वास्थ्य की समग्रता प्राप्त की जा सकती है। आईये यहाँ समझते हैं |

वर्तमान समय में योग को करने को लेकर सभी ओर चर्चाएँ है। कैसे, क्यों, कहाँ योग को लेकर सूचनाओं की बाढ की सी प्रतीत होती है। आइये प्रयास करते है, कि क्यों योग दैनिक दिनचर्या का अंग होना चाहिए।

  1. योग आदिकाल से चला आ रहा भारतीय ज्ञान है।
  2. योग में स्वयं का, स्वयं के शरीर का एवं स्वयं के मस्तिष्क का उपयोग किया जाता है किसी बाह्य तत्व का नहीं।
  3. योगाभ्यास से शारीरिक सौष्ठव की ओर अग्रसरता बढती है।

योग प्राचीनतम् भारतीय विज्ञान है जो कि हमारे ॠषि-मुनियों ने प्रकृति से प्राप्त किया है। मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही योग का भी आरंभ हो गया था। उस समय का मानव विशुद्ध रूप से प्रकृति से समत्वभाव रखता होगा। ॠषि, मुनियों एवं योगियों ने योग के विज्ञान को समझा, उसके साथ दैनिक दिनचर्या के प्रयोग किये एवं शुद्ध रूप से योग का विकास एवं विस्तार किया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि योग प्राचीनतम् मनुष्य का एक सर्वोच्च ज्ञान है जो कि मानवीय शरीर एवं मस्तिष्क के लिए अति उपयोगी है। योग को सभी व्यक्तियों को स्वयं की दैनिक दिनचर्या का अभिन्‍न अंग बनाना चाहिए।

योग आसनों में सुपरिष्कृत शारीरिक अवस्थाओं में श्‍वांस प्रश्‍वांस की तकनीक के माध्यम से स्थिर अवस्था में रहने का अभ्यास किया जाता है।

ईश्‍वर की सर्वोच्च परिष्कृत कृति ‘मानवीय शरीर’ के माध्यम से शारीरिक एवं मानसिक श्रेष्ठता को पाने का प्रयास किया जाता है। योग में किसी भी बाह्य उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। मात्र एक योग का मैट चाहिए एवं खुले आसमान के नीचे हवादार स्थान पर आप योग का अभ्यास कर सकते हैं।

योग हमारे शरीर की सूक्ष्मतम नाडियों, शिराओं के माध्यम से उर्जा का सम्पूर्ण शरीर एवं मस्तिष्क में संचार कर देता है। इससे हमारे शरीर, मस्तिष्क एवं हमारे स्वयं के मध्य एक समत्व की स्थापना हो पाती है। योग में निरंतरता एवं अभ्यास के द्वारा सर्वांगीर्ण शारीरिक एवं मानसिक श्रेष्ठता की प्राप्ति होती है।

लेखक : ॠषि सिंह

दिनांक  : 15th जुलाई 2023
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos

 तेज़ दिमाग के लिए योगासन

 तेज़ दिमाग के लिए योगासन – Tez dimaag ke liye yogasana

योग की प्रामाणिक शारीरिक अभिव्यक्ति में क्या सम्मिलित होता है। योग आसनों को करने की सामान्य परिकल्पना को यहाँ पढियें :-

  1. योग आसनों को करने के लिए मस्तिष्क शरीर को निर्देशन देता है कि शरीर एक नियत अवस्था में आजाए-यहाँ शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य एकत्व का प्रयास होता है।
  2. योग आसनों को करने की सटीक तकनीक सीखना जिससे कि शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य समत्वभाव की स्थापना हो सके। इससे स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होती है।

आसन, योग सीखने का तीसरा एवं अतिमहत्वपूर्ण अंग होते हैं। आसन योग की द्रड एवं शारीरिक अभिव्यक्ति होते हैं। योग के जो बाकि सात अंग हैं यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहारा, धारणा, ध्यान, समाधि-ये सभी योग की अप्रत्यक्ष शारीरिक अभिव्यक्ति हैं, जिनका मस्तिष्क से सीधा संबंध है।

अत: आसन योग के प्राथमिक अभ्यास की विद्या हैं। योग आसनों से मस्तिष्क एवं शरीर के मध्य सर्वोच्य तालमेल की स्थापना होती है। इससे व्यक्ति मैं कौन हूँ। इस प्रश्‍न के उत्तर को जानने के मार्ग पर बढने लगता है। योग आसन अपने आप में ही अति विस्त्रित विषय है जिसका समग्र समुचित रूप से उल्लेख यहाँ पर संभव नहीं है। योग आसनों को मात्र एक जिज्ञासु मस्तिष्क ही समझ सकता है।

यहाँ हम योग आसनों को ऐसे परिपेक्ष में समझाने का प्रयास करेंगे जिससे एक विषय के रूप में योग के विद्वार्थी को समझ आसके।

योग आसन मस्तिष्क एवं शरीर के मध्य श्रेष्ठतम् सामन्जस्य की स्थापना करते हैं। यहाँ पर समझते हैं कि योग आसनों के द्वारा उपरोक्‍त कथन कैसे प्राप्त किया जा सकता है। मस्तिष्क हमारी समस्त इंद्रियों का नियंत्रक केंद्र है। मानवीय शरीर अभ्यास के द्वारा किसी भी वातावरण या अवस्था में ढल सकता है। आसनों के द्वारा हम हमारे मस्तिष्क को अभ्यस्थ कर सकते हैं कि वह हमारे शरीर को किसी अवस्था विशेष में स्थिर बनाए रखें। योग आसनों को सटीक तकनीक से करने पर ही मस्तिष्क का उपरोक्‍त वर्णित अभ्यास संभव है। मस्तिष्क हमारे शरीर को किसी आसन की मुद्रा में बनें रहने का अभ्यस्थ बनाता है। अत: हमने समझा कि मस्तिष्क एवं शरीर योग आसनों में सामन्जस्य से कार्य करते हैं एवं यहीं से शरीर एवं मस्तिष्क में एकत्व का भाव स्थापित होने लगता है। योग के जिज्ञासु व्यक्ति योग गुरू के सानिध्य में अभ्यास करते हैं। अत: वे श्रेष्ठ स्थिति ‘‘योग: कर्मसु कौशलम्’’, जिसका उल्लेख श्री कृष्ण ने गीता में किया है की ओर बढते हैं।

योग आसनों के अनुशासित अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर के ऊर्जा चक्र सक्रिय हो जाते है। इससे सम्पूर्ण शरीर में ऊर्जा का सुचारू संचार होता रहता है। ऊर्जा के सुचारू संचार से शरीर एवं मस्तिष्क में प्रसन्‍नचित्ता एवं चिर आनंद का भाव बना रहता है। इससे आंतरिक चिरशांति की स्थापना हमारे भीतर हो पाती है।

योग आसन शरीर एवं मस्तिष्क के द्वारा बाह्य रूप से किया जाने वाला योगाभ्यास है। इससे शारीरिक सौष्ठव एवं मानसिक विलक्षणता की प्राप्ति होती है।

योग आसनों को करने से हमारा शरीर अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल पाता है, इसका परिणाम श्रेष्ठ शारीरिक सौष्ठव की प्राप्ति होता है। योग आसनों से स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होती है।

समत्व भव: आसनों के परिपेक्ष में इसका अर्थ हुआ आसनों की मुद्रा में सम्पूर्ण एकत्व। योग के विद्यार्थी का प्रमुख उद्देश्य आसनों को करने की सही एवं श्रेष्ठ तकनीक को सीखना होना चाहिए। इससे पैर के अंगुठे से लेकर सिर तक का एक सम्पूर्ण संतुलन स्थापित होगा। अत: समत्व भव: की प्राप्ति होगी। आसनों को सही तकनीक से करने पर सम्पूर्ण शरीर में रक्‍त का प्रवाह सही होता है जिससे आंतरिक अंग स्वस्थ बने रहते हैं। अत: व्यक्ति को स्वास्थ्य की समग्रता की प्राप्ति होती है।

योगावास में हम अष्टांग योग का अनुसरण करते हैं एवं इसी अष्टांग योग की विद्या को सिखाते भी है। इससे योग के विद्यार्थी की माँसपेशियाँ सशक्‍त एवं सुडौल बनती है, हडि्डयाँ मजबूत एंव गहरी होती है। शरीर सुडौल एवं लचीला बनता है। हमारा उद्देश्य है कि योग के विद्यार्थी में शारीरिक सुडौलता एवं मानसिक चिर शांति की प्राप्ति हो।

योग के प्रशिक्षु स्वयं की सर्वोच्च चेतना का अनुभव कर पाएं एवं वही से स्वयं के शरीर एवं मस्तिष्क का संचालन करने में सक्षम हो। उपरोक्‍त वर्णित स्थिति हम बाह्य जगत में ढूंढते रहते हैं जबकि ये सभी योग के अंदर विद‍्यमान रहती है।

लेखक : ॠषि सिंह

दिनांक  : 10th जुलाई 2023
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घबराहट के लिए प्राणायाम

घबराहट के लिए प्राणायाम -Ghabrahat ke liye Pranayama

योग की गहराई को समझना-प्राणायाम | यहाँ पर पढिये प्रणायाम की सामान्य जानकारी एवं प्राणायाम क्यों श्‍वास प्रश्‍वास की श्रेष्ठतम् तकनीक है?

हम योगावास में  यह मानते हैं कि प्राणायाम मानवीय मस्तिष्क को कुशाघ्र करने की श्रेष्ठ विद्या है। प्राण का अर्थ प्राणवायु से होता है। बोलचाल की भाषा में प्राण अर्थात् वायु जो हम श्‍वांस के माध्यम से अंदर लेते हैं। आयाम से तात्पर्य नवीन विस्तार से होता है। अत: प्राणायाम से अर्थ नियंत्रित रूप से प्राणवायु का तारतम्य के साथ विस्तार है। सांसों को नियंत्रित करने के 3 चरण होते हैं :-

(1)          श्‍वांस          (2)          प्रश्‍वांस        (3)          श्‍वांस रोककर रखना

श्‍वांस को रोककर रखने की विद्या श्‍वांस एवं प्रश्‍वांस के मध्य में की जाती है। प्राणायाम योग गुरू के सानिध्य में ही किया जाना चाहिए क्योंकि यह विज्ञान होने के साथ-साथ कला भी है। प्राणायाम सासों में तारतम्यता एवं नियंत्रण स्थापित करता है। अत: योग के विद्यार्थी का स्वयं के मस्तिष्क पर भी नियंत्रण होना चाहिए। नियंत्रित मस्तिष्क सदैव सकारात्मक एवं रचनात्मक होता है। योग आसनों में भी दक्षता तब ही आती है जब मस्तिष्क नियंत्रित होता है। प्राणायाम से हमारा श्‍वसनतंत्र मजबूत बनता है। इससे हमारा स्नायुतंत्र मजबूत बनता है। प्राणायाम की विद्या निरंतरता चाहती है। प्राणायाम में पारंगतता आने पर हमारे शरीर के सभी अंग स्वस्थ बने रहते हैं। इससे हमें स्वास्थ्य की समग्रता प्राप्त होती है।

लेखक : ॠषि सिंह

दिनांक  : 10th जुलाई  2023
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos

पेट एवं योग आसन

पेट एवं योग आसन- Pate evam yogasana

योग के द्वारा कैसे समतल पेट पाया जा सकता है।
योग आसन हमारे पेट की मांसपेशियों एवं अंगों पर नैसर्गिक रूप से कार्य करते हैं। यहाँ पर पढियें कैसे?

हम यहाँ पर विशेषतौर से पेट एवं योग आसनों पर चर्चा करेंगे क्योंकि समतल पेट या बिना अतिरिक्‍त चर्बि वाला पेट पाना वर्तमान समय में सभी की चाह है। योग करने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले लाभकारी प्रभाव की चर्चा हमने हमारे अन्य ब्लॉग में की है।

योग आसन एवं पेट पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को हम ऐसे समझ सकते है कि आसनों से हमारे पेट के मसल्स सुडौल बनते हैं, अतिरिक्‍त चर्बि हर जाती है एवं पेट के अंग भी पूर्णतया स्वस्थ्य बने रहते हैं। जैसा कि विदित है कि जब हमारा पेट स्वस्थ्य रहता है तब ही हम पूर्णतया स्वस्थ्य रहते हैं। योग आसनों से पेट की नैसर्गिक रचना बनी रहती है। पेट की मांसपेशियाँ जब सूद्रड रहती है तो पीठ पर भी अतिरिक्‍त भार एवं तनाव नहीं रहता। पेट संबंधी विभिन्‍न विकार जैसे गैस, ऐसिडिटी, ब्लोटिंग इत्यादि को सही यौगिक तकनीक से किये जाने वाले आसनों से ठीक किया जा सकता है।

लेखक : ॠषि सिंह

दिनांक  : 5th जुलाई 2023
सर्टिफाइड योग एंड मैडिटेशन ट्रेनर www.yogavaas.in #Yogaseeker #YogaTherapist # LifeStyleCoach #Naturelover #SeekerofCosmos